लॉकडाउन में गाँव हमे बुला रही है
दिन-रात भूखे पेट सो रहे हैं,
अपनी लाचारता पर हम ख़ुद रो रहे हैं।
कोरोना की क़हर हमें रूला रही है,
लॉकडाउन में गाँव हमें बुला रही हैं।
जिस गाँँव को छोड़कर हम भागे थे,
बिना सोये पूरी रात हम जागे थे।
आज शहर हमें भगा रही है,
लॉकडाउन मे गाँव हमें बुला रही है।
अपनी खुशी के लिए उस गाँव से नाता हमने तोड़े थे,
गाँव से आकर एक-एक ईट हमने जोड़े थे।
अच्छे मकान में भी कोरोना हमें पकड़ रही है,
लॉकडाउन में गाँव हमें बुला रही है।
मुसीबत में कोई नहीं है हमारे साथ,
बीत रही है जिंदगी अकेले दिन-रात।
कोरोना हमे अपनी चपेट मे जकड़ रही है,
लॉकडाउन मे गाँव हमें बुला रही है।
- Author Niraj Yadav (Bhopatpur Nayakatola, Motihari : Bihar)
Mail id : ny5726029@gmail.com
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