Friday, 28 May 2021

My Quote

उन्नति की ओर पड़ा हमारा क़दम।

शहर में आकर शहरी बन गए हम।

अपने गाँव को ही शहर बना दें,

इतना किसी में नहीं था दम।



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क़दम= पैर, पदचिन्ह।

और

कदम= कदंब का पेड़

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सपने हम हज़ारों देखते हैं, 

और सभी सपनों को साकार करते हैं पिता। 

जब हम खुश होते हैं, 

तो हमसे भी ज़्यादा मुस्कुराते हैं

 पिता।

 -Author Niraj Yadav

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सारा जीवन आपने खेतों में हल चलाया। 

खून और पसीना बहा के, 

आपने मेरा कल बनाया। 


🙏🙏🙏🙏🙏


ना जात,  ना धर्म देखता हूं। 

मैं कवि हूं, सिर्फ कर्म देखता हूं। 


Wednesday, 26 May 2021

Back cover of book

हम जानते हैं कि चाहें हम जितना भी कोशिश कर लें मगर माँ का कर्ज कभी भी नहीं चुका सकते। लेकिन हम इतनी कोशिश जरूर कर सकते है जिससे हमारी माँ के चेहरे पर मुस्कान आ जाए।

और यह साझा-संग्रह (प्यारी माँ) एक हमारी छोटी-सी कोशिश है अपने माँ को खुश करने की और उसके चेहरे पर मुस्कान लाने की।

इस साझा-संग्रह में कुल 31 सह - लेखकों एवं लेखिकाओं ने मिलकर अपने शब्दों और विचारों से माँ के उपर रचनाएं रचि हैं। और इस पुस्तक को निरज यादव ने संकल किया है। और पियंका महंत जी ने शुद्धिकरण किया है. इस पुस्तक में हर रचना माँ के विषय पर ही है। और आपको यह पुस्तक पढ़ने में इतना आनंद आएगा वो हम बता नहीं सकते।

तो देर किस बात की? आज ही औडर करें और इस पुस्तक को अपने घर मंगाए।

Sunday, 23 May 2021

अमर हो जाते है.....

ये चाँद वही, सूरज वही,

बदल तो हम जाते हैं।

ये धरती वही, आकाश वही,

इसको छोड़ जाते हैं।


हमारा यहां से जाना है निश्चित,

तो आख़िर क्यों हम घबड़ाते हैं?

पहले तो हम करते हैं ग़लती,

फिर बाद में पछताते हैं।


जिन्होंने जीना सीख लिया,

वो मर के भी जगमगाते हैं।

भले लोग उसके शव को जला दें,

लेकिन वो लोगों के दिलों में  बस जाते हैं।


लोग उसके गुण को गाएं,

ऐसा कुछ कर जाते हैं।

मर कर भी इस दुनिया में,

अमर हो जाते हैं.....

अमर हो जाते हैं.....


Published in Khwabo ka Pulinda anthology book



मैं कवि हूं, लिखना मेरा कर्म है।

सच को सच कहूं, झूठ को झूठ,

यही मेरा धर्म है।

Tuesday, 18 May 2021

My song -2

एकरा चपेट में आईल पूरा संसार

अब मान लेकक सब केहू एकरा से हार

की एकरा से अब सब केहू भईल मजबूर...2

कऊवा उड़ - खरहा उड़, कोरोना भईल मशहूर.....2


निकलता S ता जे बहरी, पुलिस से पिटाई

चोट जब लागी तब याद आई माई


की पुलिस डंडा लेके भागे, 

ऊ पिछे हम आगे....2

ओकनी का कहे कि मास्क लगाना अब जरूर.....2

कऊवा उड़ - गदहा उड़, कोरोना भईल मशहूर....2


नीरज करें जागरूक, कोरोना पर लिख के हो

बीतावत तारें लॉकडाउन , कुछो - ना - कुछो सिख के हो


निकलल S Vaccine, 

तबो बड़े दिन - प - दिन

की हमनी का बानी अपना गऊवा से बहुत दूर

 कऊवा उड़ - कुकुड़ उड़, कोरोना भईल मशहूर....2


की एकरा से अब सब केहू भईल मजबूर...2

कऊवा उड़ - खरहा उड़, कोरोना भईल मशहूर.....2



Monday, 17 May 2021

लॉकडाउन में गाँव हमे बुला रही है

लॉकडाउन में गाँव हमे बुला रही है



दिन-रात भूखे पेट सो रहे हैं,

अपनी लाचारता पर हम ख़ुद रो रहे हैं।

कोरोना की क़हर हमें रूला रही है,

लॉकडाउन में गाँव हमें बुला रही हैं।


जिस गाँँव को छोड़कर हम भागे थे,

बिना सोये पूरी रात हम जागे थे।

आज शहर हमें भगा रही है,

लॉकडाउन मे गाँव हमें बुला रही है।


अपनी खुशी के लिए उस गाँव से नाता हमने तोड़े थे,

गाँव से आकर एक-एक ईट हमने जोड़े थे।

अच्छे मकान में भी कोरोना हमें पकड़ रही है,

लॉकडाउन में गाँव हमें बुला रही है।


मुसीबत में कोई नहीं है हमारे साथ,

बीत रही है जिंदगी अकेले दिन-रात।

कोरोना हमे अपनी चपेट मे जकड़ रही है,

लॉकडाउन मे गाँव हमें बुला रही है।



- Author Niraj Yadav (Bhopatpur Nayakatola, Motihari : Bihar)

Mail id : ny5726029@gmail.com

Saturday, 15 May 2021

My song

आई हो दादा कईसन कोरोना के कहर बा


आई हो दादा कईसन कोरोना के कहर बा - 2
अबहू तक नईखे एकर परमानेंट जहर बा - 2
आई हो दादा कईसन कोरोना के कहर बा - 2

                  ....... music .......

की बईठल - बईठल देह पूरा अलसियाता
निकलाता जे बहरी घर से, उ पुलिस से पिटाता...2
की बंद भईल पूरा गऊवां आ शहर बा
आई हो दादा कईसन कोरोना के कहर बा....2

                 ....... music.........
.
.
.
की कवन हालत होत होई, जे बे-घर बा
आई हो दादा कईसन कोरोना के कहर बा....2

               ........ music .........

नाहीं Ambulance मिलें, नाहीं मिलत बा जगहियॉं Hospital में
की अब गरिबन स s के छुटता प्राणावा एक ही पल में....2
पूरा एक साल ले गईल, अबहु ओकरा से डर बा
आई हो दादा कईसन कोरोना के कहर बा....2


Saturday, 8 May 2021

माँ by Author Niraj Yadav

माँ, अगर तेरी डांंट ना पड़ी होती मुझे,

तो शायद आज मैं ज़िंदगी के लिए तैयार नहीं होता।

माँ, अगर ये लॉकडाउन ना लगी होती,

तो मैं कब का आ गया होता, अब और इंतज़ार नहीं होता।


माँ अगर तेरी दुआ ना होती मुझ पर,

तो शायद आज मेरे सपने साकार नहीं होते।

भले मेरे चेहरे मुस्कुराते हो,

लेकिन मेरा दिल थक गया है रोते-रोते।


दो साल होने को है, तुझसे मिला नहीं,

तुझसे दूर रहकर अब एक और दिन भी पार नहीं होता।

माँ, अगर ये लॉकडाउन ना लगी होती,

तो आज ही चला आता, अब और इंतज़ार नहीं होता।


Friday, 7 May 2021

How can we say, we are civilized beings?

Every hour we feel proud.

Yet, most spit on the ground. 

Ignorance of how the changes we can bring, 

How can we say, we are civilized beings?


Now and then, we chop down trees.

Before we learn, it will cease.

Mere mortals deaf to their feelings,

How can we say, we are civilized beings?


Minor distance? We'll use a car.

Would it be ok? If we go far.

When we turn blind to these things,

How can we say, we are civilized beings?


Animals killed for our food.

For each life, I don't feel good.

Day by day, the numbers are decreasing,

How can we say, we are civilized beings?


It is us killing biodiversity.

For the next to face adversity.

If we cannot change our wrong doings,

How can we say, we are civilized beings?

Sunday, 2 May 2021

बापु से ही भारत आज जिंदाबाद है

 आज शान से हम रहते है।

अपना सिना तान के हम चलते है।

वो आज़ादी की लड़ाई वाला दिन हमें याद है।

बापु से ही भारत आज जिंदाबाद है


दुनियाँ में भारत की एक अच्छी पहचान है।

इस आज़ादी के लिए कईयों ने दी बलिदान है।

आज गर्व से दिल बोलता, भारत जिंदाबाद है।

बापु से ही भारत आज जिंदाबाद है।

कुछ ना कुछ बात होती है


कुछ ना कुछ बात होती है



शहर में भी धोबी घाट होती है।

कड़ी धूप में भी बरसात होती है।

हर एक कवि की कविता में, 

कुछ ना कुछ बात होती है।


एक ही दुनियाँ में कहीं दिन तो कहीं रात होती है।

कोई दु:ख झेलता तो किसी के ऊपर खुशियों की बरसात होती है।

कहीं कुछ हो या ना हो, पर हर कवि के अन्दर।

कुछ ना कुछ बात होती है।


राजनीति में तो हमेशा धर्म और जात होती है।

चुनाव में सिर्फ और सिर्फ बात होती है।

नेता कुछ करें या ना करें लेकिन हर कवि के अन्दर,

कुछ ना कुछ बात होती है।


जीवन की पढ़ाई माता-पिता से ही शुरुआत होती है।

हमारे शिक्षक ही हमारे क़लम की दवात होती है।

शिक्षकों की डांंट और बात सुनकर बनते है हम कवि,

और हमारे अन्दर भी कुछ ना कुछ बात होती है।


मरने के बाद हमारी जगह श्मशान घाट होती है।

गुलाब के फूलों में हमेशा काँटे होती है।

हमेशा गमकने के लिए एक कवि में,

कुछ ना कुछ बात होती है।


 

गमछा

इस गमछे की एहमियत हमें बचाये रखना है। दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहे? गमछा सदा लगाये रखना है।