उन्नति की ओर पड़ा हमारा क़दम।
शहर में आकर शहरी बन गए हम।
अपने गाँव को ही शहर बना दें,
इतना किसी में नहीं था दम।
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क़दम= पैर, पदचिन्ह।
और
कदम= कदंब का पेड़
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सपने हम हज़ारों देखते हैं,
और सभी सपनों को साकार करते हैं पिता।
जब हम खुश होते हैं,
तो हमसे भी ज़्यादा मुस्कुराते हैं
पिता।
-Author Niraj Yadav
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सारा जीवन आपने खेतों में हल चलाया।
खून और पसीना बहा के,
आपने मेरा कल बनाया।
🙏🙏🙏🙏🙏
ना जात, ना धर्म देखता हूं।
मैं कवि हूं, सिर्फ कर्म देखता हूं।